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छेडो़ न कान मोहे

(कॄष्णपर्व नाटक का गीत)

छेडो़ न कान मोहे नटख़ट गोपाल तोहे

बंसी की सों तोहे बंसी की सों

गोरी दीवानी मोरी राधा रंगीली थोरी

सुनियो मोरी ना दीजो

बंसी की सों मोहे बंसी की सों…

आवे तूं पास जावे दे दई के प्यास करे

नैनन ऊदास मोरे नैनन ऊदास

फिर जा के मिल जावे गोपीओं के साथ

नाहि सोचे क्या मोरे मनवा की आस

मोरे मनवा की आस…


मनवा जो तोरा है मोरा ही मनवा है

बसीयो वही ना दीजो बंसी की सों

बंसी की सों मोहे बंसी की सों…

अंबर ना बनियो के बादल ही रहियो जी

मंडरा के मोह मुजे़ जईयो ज्यां चाह तोरी

जईयो ज्यां चाह

ना बरसूं तुज़ पे जो खुद ही जो तरसूं तो

क्या कान्हा राधा री होगी ये चाह

कहे होगी ये चाह?

ये तेरे रंग सोहे मनवा को देख मोहे

खेलेंगे रास छोड़ बंसी की सों

छेडो़ गोपाल छोड़ बंसी की सों

बंसी की सों छोड़ बंसी की सों

– संजय वि. शाह ‘शर्मिल’

(This song is basically about a conversation between Radha and Krishna in the play KRISHNAPARVA. Sudha Chandran plays RADHA in the play and the song)