मेरी मां ने कहा था बेटे छोटा है तूं
रोज़ ये बाता सोच सोच मैं खुद से पुछूं…
मां सच्ची या सच्चा मैं हूं?
पहले तो ये जाना भी ना मैया है क्या
चिल्लाती भी ईतराती ये औरत है क्या
खाना भी देती थी फिर भी गुस्सा करती
और अकेले जा के रोती करती है क्या?
रिश्ता रस्ता रोज़ सीखाती चूप रह के वो
कितना बोला उसने मैंने सुना भी है क्या?
एक ये छोटी बात है बडी़ कैसे कह दूं?
रोज़ ये बाता सोच सोच मैं खुद से पुछूं…
मां सच्ची या सच्चा मैं हूं?
गद्दा बिस्तर थाली कपडें सब कुछ मैला
स्कूल से आ के फैंक दिया था कैसे थैला
सब कुछ सब दिन ठीक रहा पर ऐसे जैसे
सब कुछ मैंने किया ना उसने देखा जैसे
और अगर कोई कह दे कुछ भी मेरे बारे
वो संभाले हंस के कर दे न्यारे न्यारे
पता नहि था पता चलेगा एक दिन ही यूं
रोज़ ये बाता सोच सोच मैं खुद से पुछूं…
मां सच्ची या सच्चा मैं हूं?
– संजय वि. शाह ‘शर्मिल’
ટિપ્પણીઓ
sanjaybhai tamari lakhi kavita khub j saras chhe.its butifully written.
very nice poem………………..
tooooooooooooooo goooood poem
heart touching
really i like it.
wah wah wah , saach hai, kabhi pataa nahi lagega ki maa kya hai, sirf mahsus hoga ki maa ka ashirwad hai
thank you very much ajaybhai!! Request you to spread a word about my poem so that more and more people realise the real worth of mom!!